Sunday, September 16, 2007

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जो खिडकी के बाहर हैं

वे नहीं जानते क्या हो रहा भीतर

आवाजों के सहारे लगाते हैं अटकलें

दौडाते हैं कल्पनाओं के घोडे

खिडकी से झांकती हर आकृति उन्हे लगती है एक जैसी

एक जैसी आंख से देखते हुए

वे करते हैं एक जैसी टिप्पणी


खिडकी के भीतर जो हो रहा है

से भीतर से ही महसूसा जा सकता है

सुनी हुई आवाजों से कहीं अधिक शोर भरा होता है भीतर की तरफ

6 comments:

उन्मुक्त said...

यह तो पता नहीं कि आपके मन क्या चल रहा है पर स्वागत है हिन्दी चिट्ठजगत में।

Sanjay Tiwari said...

नारद पर अपना ब्लाग रजिस्टर करने के लिए इस लिंक पर जाएं.
http://narad.akshargram.com/about/linkus/
चिट्ठाजगत पर अपना ब्लाग जोड़ने के लिए वहां ईमेल और पासवर्ड भरकर अपना ब्लाग रजिस्टर करें.

ब्लागवाणी पर अपना चिट्ठा दर्ज करने के लिए इस लिंक पर जाईये.
http://blogvani.com/logo.aspx

जानकारी और समसामयिक मुद्दों पर लिखते रहिए.

Udan Tashtari said...

स्वागत है आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में. निरंतर लेखन के लिये शुभकामनाऐं.

Sanjeet Tripathi said...

ह्म्म, तो चिंतन प्रक्रिया चालू आहे!!गुड है!!
स्वागत है हिन्दी चिट्ठाजगत में , आशा है आपको नियमित पढ़ सकेंगे!

शुभकामनाएं

ePandit said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। उम्मीद है नियमित रुप से लेखन जारी रहेगा।

नारद पर अपना चिट्ठा अवश्य रजिस्टर कराएँ।

36solutions said...

Swagat Hai aapaka !