जो खिडकी के बाहर हैं
वे नहीं जानते क्या हो रहा भीतर
आवाजों के सहारे लगाते हैं अटकलें
दौडाते हैं कल्पनाओं के घोडे
खिडकी से झांकती हर आकृति उन्हे लगती है एक जैसी
एक जैसी आंख से देखते हुए
वे करते हैं एक जैसी टिप्पणी
खिडकी के भीतर जो हो रहा है
से भीतर से ही महसूसा जा सकता है
सुनी हुई आवाजों से कहीं अधिक शोर भरा होता है भीतर की तरफ
6 comments:
यह तो पता नहीं कि आपके मन क्या चल रहा है पर स्वागत है हिन्दी चिट्ठजगत में।
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जानकारी और समसामयिक मुद्दों पर लिखते रहिए.
स्वागत है आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में. निरंतर लेखन के लिये शुभकामनाऐं.
ह्म्म, तो चिंतन प्रक्रिया चालू आहे!!गुड है!!
स्वागत है हिन्दी चिट्ठाजगत में , आशा है आपको नियमित पढ़ सकेंगे!
शुभकामनाएं
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। उम्मीद है नियमित रुप से लेखन जारी रहेगा।
नारद पर अपना चिट्ठा अवश्य रजिस्टर कराएँ।
Swagat Hai aapaka !
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